दहेज प्रथा से महिला स्वतंत्रता: समाज का संकल्प
![चित्र](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjLe94DqZ6odG1FQGpv3OJBtib6AR9AqePXP_ydn9xX1G4DImyle3BPzsKe4dP1Q8uVt0sQI1EXUY9pAA6b134mH4y8ZYsF8pD_WoijY302lSwQBavUp0IBuOXnewYbdLb1KmWwrIumI2t6_jXkJBPRRCRRtaEb7jP8zC8jU0zAXfXUd468fjuqQlXFekrD/w651-h467/449321261_903852101785520_7254525571032433888_n.jpg)
भारत में वैसे तो परंपरागत रूप से आज भी कई कुरितीयां विद्यमान है। बाल विवाह,निरक्षरता,दहेज प्रथा,सती प्रथा,पर्दा प्रथा,बहु विवाह, विधवा विवाह विरोध,जातिवाद, और सांप्रदायिकता प्रमुख है। दहेज प्रथा के नाम पर यह एक प्रचलित सामाजिक बुराई है जो संपत्ति, विवाह के समय वधू के परिवार की तरफ से दी जाती है। इस बुराई में महिलाओं के प्रति कठोर यातनाएं और अपराध उत्पन्न हुयें हैं। एक गरीब पिता की अपनी पुत्री का विवाह करना बहुत ही कठिन में कष्टदायक हो जाता है। इस अभिशाप से लड़की का जीवन नर्क के समान बन जाता है जिसके लिए उसके परिवार द्वारा उसे प्रताड़ित भी किया जाता है। दहेज का प्रयोग अक्सर न केवल विवाह के लिए स्त्री की वांछनीयता बढ़ाने के लिए हुआ है बल्कि बड़े परिवारों में यह सत्ता और संपत्ति बढ़ाने के लिए कई बार किया गया है। इसके कारण वर वधू के परिवारों के बीच दहेज को लेकर सहमति न होने पर रिश्ते टूट जाते हैं। दहेज प्रथा के ये विभत्स परिणाम हमें देखने को मिलते हैं। पिछड़े भारतीय समाज में दहेज प्रथा अभी भी विकराल रूप में है। राजस्थान समग्र कल्याण संस्थान संस्था द्वारा इस कार्य में कई भरसक प्रयास कि...