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समर्थन और सहायता : दिव्यांग व्यक्तियों के लिए समाज सेवाओं की अद्वितीय पहल

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राजस्थान समग्र कल्याण संस्थान संस्था सदा ही दिव्यांगों के कार्य हेतु प्रयासरत में प्रत्यनशील है। समाज के इस उपेक्षित वर्ग को हमेशा किसी न किसी मदद की आवश्यकता रहती ही है। हमारे द्वारा की गई एक जरा सी मदद से उनके विकास की कुछ राहें संभव हो जाती है। हमारे गांव व समाज में कई दृष्टिबाधित, मूकबधिर, तथा शारीरिक रूप से दिव्यांग निराश्रित ऐसे व्यक्तियों का जिनके जीवन यापन के लिए स्वयं का ना तो कोई साधन है और ना ही व किसी प्रकार का ऐसा परिश्रम कर सकते हैं जिससे वह समस्या से घिरे रहते हैं। व आर्थिक रूप से भी सशक्त नहीं होते कि स्वयं की समस्या हल कर सके। विकलांग का मुख्यता निम्न प्रकार की होती है। दृष्टिबाधित, श्रवण बाधित,वाक बाधित, चलन बाधित, मानसिक रोगी, मानसिक मंदता वह बहु विकलांगता से ग्रस्त व्यक्ति होते हैं। विकलांगता में व्यक्तियों को अनेक प्रकार की चुनौतियों और समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इस कारण से मन में निराशा, हताशा आदि के भाव आना स्वाभाविक होता है। हम ऐसे तरीके खोजने पढ़ते हैं जिससे उनका मानसिक संतुलन बना रहे और वह अपनी मानवियता न खोये इसके लिए संस्था द्वारा ऐसे व्यक्तियों को चश्

भारत में गौरैया संरक्षण का महत्व: एक सामुदायिक प्रयास

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भारत में पाई जाने वाली गौरैया एक बहुत सामाजिक पक्षी है। यह पक्षी झुंड बनाकर रहता है और सामुदायिक आवास करता है। यह बहुत छोटे और प्रभावी होते हैं। यह विभिन्न प्रकार की जलवायु में रह सकते हैं। यह उन भागों में भी ज्यादा मिलते हैं जहां छोटे-मोटे कीट पतंगे होते हैं जिनको यह अपना भोजन बनाती है। यह सभी प्रकार का भोजन खा जाती हैं, जिसमें दाना,पानी,फूल रस आदि होते हैं। यह वर्ष में दो बार प्रजनन कर 5 से 6 अंडे देती हैं। यह बहुत घरेलू पक्षी है। यह मुख्यतः उत्तरी अफ्रीका ,यूरोप,एशिया में पाई जाती है। यह एक छोटी चिड़िया है जो हल्के भूरे रंग या सफेद रंग में होती है। गौरैया बीज,अनाज,और लार्वा को भी खाती है और प्रभावी  किट नियंत्रक एजेंट साबित होती है। परागकण पौधों के लिए एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जो गौरैया द्वारा की जाती है क्योंकि वे अपने भोजन की खोज के दौरान पौधों के फूलों पर भी जाती हैं और परागकणों को स्थानांतरित करने में अप्रत्यक्ष रूप से मदद करती है। बार-बार चहकने की आवाज से इनको आसानी से पहचाना जा सकता है। उनकी प्रजनन क्षमता उपनगरों व गांव में अधिक है जहां छोटे-मोटे कीट-पतंगों की प्रचुरता है। ज