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ग्रामीण महिलाओं को सशक्त बनाना- आशा और आत्मनिर्भरता का मार्ग

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मेरा नाम सुनीता है मैं एक बहुत गरीब और विधवा महिला हूँ मेरे 1 बेटा है जो बहुत छोटा है पहले तो जैसे तैसे मैं अपना गुजारा कर लेती थी परन्तु बच्चे की शिक्षा, घर खर्च की वृद्धि को देखते हुए मेरा कार्य करना बहुत जरुरी था ! लेकिन मुझे कोई राह , दिशा , जानकारी प्राप्त न होने के कारण दिल में डर का भाव बना रहता था ! फिर पड़ोस की महिला के द्वारा मुझे स्वयं सहायता समूह के बारे में पता चला ! जिसमे सभी महिलायें मिलकर एक समूह गठित करती है और अपनी छोटी छोटी बचतों से एक दूसरे की मदद करती है यह बात जानकार मैंने एक समूह में अपना नाम लिखवा लिया और अपनी समूह के बचत के माध्यम से अपनी छोटी मोटी जरूरतों को इसी से पूरा करने लगी ! परन्तु मैं स्वयं का अपना कोई रोजगार डालना चाहती थी ! फिर हमारे समूह को 1 वर्ष पश्चायत बैंक से ऋण प्राप्त हुआ और फिर मैंने अपने कृषि  कार्य को प्रारंभ किया ! धीरे धीरे मैंने इस कार्य से प्राप्त राशि को बैंक किश्त रूप में अपने ऋण में चुकौती करवाई ! अपने इस कार्य को करने में पूर्ण स्वतंत्र हो गई ! स्वयं सहायता समूह महिलाओ को वो मंच प्रदान करता है जहां पर उसे अपने विचार अभिव्यक्त...

महिलाओं का उद्यम: सफलता की नई परिभाषा

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मेरा नाम मंजू नायक है मैं एक ग्रामीण महिला हूँ और कक्षा 5वी तक पढ़ी हूँ ! मेरे परिवार में मेरे 2 बच्चे व् पति हम सब साथ रहते है शादी के बाद से मेरे घर की आर्थिक स्थितियां ठीक नहीं रहती थी ! पति फुटकर मजदूरी करते है ऐसे में बच्चों को पढ़ना, घर खर्च चलाना बहुत मुश्किल हो जाता है ! घर की जरूरतों का जैसे एक पहाड़ सा खड़ा हो गया जिसे पार करना बेह्द कठिन सा लगता है ! फिर मैंने समूह मे अपना नाम लिखवाकर मासिक बचत करने लगी ! धीरे धीरे ये बचतें बढ़ने लगी और समूह आपस में पारस्परिक ऋण प्रदान करने लगे ! जिनको मैं समय समय पर अपनी  आवस्यकतानुसार प्राप्त कर अपनी जरूरतों को पूरा कर सकने में सक्षम हो गई ! परन्तु अभी मुझे अपने पैरो पर खड़ा होना था ! उसके बाद हमारे समूह को बैंक से ऋण प्राप्त हुआ ! जिसको मैंने भी लिया और गांव में ही सब्जी की दुकान का कार्य प्रारम्भ किया ! शुरू शुरू मैं कुछ परेशानियों के बाद यह व्यवसाय रफ़्तार पकड़ने लगा ! पहले तो गांव में पास के लोग ही सब्जियाँ लिया करते थे पर अब पूरा गांव व् आस पास के गांव भी आकर मुझसे ही सब्जी प्राप्त करने लगे ! इस काम में मेरे पति भी मेरा सहयोग करते थ...

आर्थिक स्वतंत्रता के माध्यम से महिलाओं का सशक्तिकरण: ग्रामीण भारत की एक कहानी

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मेरा नाम बरजी देवी है। मेरा गांव पंगारा है। मेरे घर पर सब मिट्टी के बर्तन बनाने का काम करते हैं। हम जाति से कुम्हार है। घर मे मेरे पति,बेटा,बहू,व दो पोते हैं। घर में हमारे पास एक ही चाक है जिससे हम इतना मन नहीं बना पाते की मार्केट में बड़ी संख्या में अपना माल बेच सकें। केवल घर की जरूरतें पूरा होने तक की आय हमें इससे प्राप्त हो जाती है। पर कभी-कभी हालात बिगड़ भी जाते हैं। हमारे पास इतना ज्यादा कुछ बच नहीं पता कि इस काम को आगे बढ़ा सके | हमने कई बार सोची परंतु घर के हालात व सही जानकारियां ना मिलने की वजह से हम अपने इस कार्य को आगे नहीं बढ़ा सके। फिर एक दिन हमारे गांव में राजस्थान समग्र कल्याण संस्थान के प्रतिनिधि आए। उन्होंने महिलाओं के साथ एस एच जी कार्यक्रम किया जिसमें हमें बताया कि कैसे हम बचत करें,समूह बनाएं, आपसी ऋण लेवे और दे ,और रोजगार हेतु बैंक से किस तरह ऋण प्राप्त करें और इसकी अदायगी की भी किस तरह से करें। इसके लिए संस्था द्वारा प्रशिक्षण कार्यक्रम भी करवाए जाते हैं। सभी बातें पूर्ण होने के बाद इच्छित महिलाओं के समूह निर्माण करवाए गए और उनमें बचत करने की भावना को भी प्रबल किया ...