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आर्थिक स्वतंत्रता के माध्यम से महिलाओं का सशक्तिकरण: ग्रामीण भारत की एक कहानी

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मेरा नाम बरजी देवी है। मेरा गांव पंगारा है। मेरे घर पर सब मिट्टी के बर्तन बनाने का काम करते हैं। हम जाति से कुम्हार है। घर मे मेरे पति,बेटा,बहू,व दो पोते हैं। घर में हमारे पास एक ही चाक है जिससे हम इतना मन नहीं बना पाते की मार्केट में बड़ी संख्या में अपना माल बेच सकें। केवल घर की जरूरतें पूरा होने तक की आय हमें इससे प्राप्त हो जाती है। पर कभी-कभी हालात बिगड़ भी जाते हैं। हमारे पास इतना ज्यादा कुछ बच नहीं पता कि इस काम को आगे बढ़ा सके | हमने कई बार सोची परंतु घर के हालात व सही जानकारियां ना मिलने की वजह से हम अपने इस कार्य को आगे नहीं बढ़ा सके। फिर एक दिन हमारे गांव में राजस्थान समग्र कल्याण संस्थान के प्रतिनिधि आए। उन्होंने महिलाओं के साथ एस एच जी कार्यक्रम किया जिसमें हमें बताया कि कैसे हम बचत करें,समूह बनाएं, आपसी ऋण लेवे और दे ,और रोजगार हेतु बैंक से किस तरह ऋण प्राप्त करें और इसकी अदायगी की भी किस तरह से करें। इसके लिए संस्था द्वारा प्रशिक्षण कार्यक्रम भी करवाए जाते हैं। सभी बातें पूर्ण होने के बाद इच्छित महिलाओं के समूह निर्माण करवाए गए और उनमें बचत करने की भावना को भी प्रबल किया

महिला सशक्तिकरण द्वारा स्वरोजगार: एक गांव प्रगति की ओर

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मेरा नाम मैंना नायक है, मैं एक गृहणी हूं। घर में मेरे चार बच्चे हैं। वह पति मजदूरी का कार्य करते हैं। हमारा गांव अभी भी बहुत पिछड़ा हुआ है। यहां रोजगार संबंधी कोई भी साधन उपलब्ध नहीं है जिसके कारण  हमें यहाँ रोजगार नहीं मिल पाता है अतः हमारी आर्थिक स्थिति भी ठीक नहीं है। फिर बच्चों की पढ़ाई का खर्च बहुत अधिक हो जाता है। कुछ माह पुवऺ हमारे गांव में RSKS की टीम आई | उनके द्वारा महिलाओं के लिए   SHG का कार्यक्रम रखा गया जिसमें बहुत सारी महिलाओं ने भाग लिया। वहाँ उन्हें बहुत अधिक जानकारियां दी गई। उनके द्वारा बनाए गये SHG में मैंने भी अपना नाम लिखवा लिया। समय-समय पर मीटिंग के माध्यम से वह हमें बचत करने की प्रेरणा सीखते थे और अपनी बचत को SHG की महिलाओं में आपसी ऋण के रूप में बांटने के लिए प्रेरित करते थे। धीरे-धीरे फिर हमनें बैंक से स्वरोजगार लिए ऋण आवेदन किया। उसके बाद मैंने संस्था के माध्यम से सिलाई प्रशिक्षण में अपना नाम लिखवा दिया। प्रशिक्षण में हमें सभी प्रकार के वस्त्र सिलना सिखाया गया। और उस काम में हमें पांरगत किया फिर हमें बैंक से जो ऋण प्राप्त हुआ, उससे मैंने सिलाई मशीन खरीद कर घर

आत्म निर्भरता की और बढ़ते कदम

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  मेरा नाम गेंन्दा देवी है मैं कड़ैल गांव में रहती हूँ मेरे पति के गुजर जाने के बाद बहुत दुखी हो गई हूँ मेरे 3 बच्चे हैं वो बहुत छोटे हैं मैं नरेगा में मजदूरी कार्य करती हूँ और कभी कभी फूटकर मजदूरी करती हूँ कोई भी काम किसी भी उम्र में प्रारम्भ कर सकते हैं इसका कोई वक्त निश्चित नहीं होता है मन में दृढ़ निश्चय कर मैंने राजस्थान समग्र कल्याण संस्थान के स्वयं सहायता समूह से जुड़ी व बैंक से ऋण प्राप्त कर मैंने स्वयं का बकरी पालन व्यवसाय प्रारंभ किया| मैंने प्रथम बार में बैंक ऋण से 5 बकरी खरीदी फिर उनका लालन- पालन कर वर्षभर में उनसे 10 बच्चे प्राप्त कर अपनी बैंक ऋण की अदायगी करी | अब पूरी तरह से यह बकरीयां मेरी हो गई | इनको खिलाने पिलाने में ज्यादा खर्च नहीं आता है यह गरीब की गाय है धीरे धीरे मैंने और बकरी खरीद ली |  अब दूध, इनकी खाद, व मैमनो को बेचकर मैं अच्छी आमदनी कमा रही हूँ यह बकरी पालन व्यवसाय बहुत सरल और सुगम है जरूरी नही किसी भी काम को करने के लिये अधिक धन की आवश्यकता हो हम छोटी पूंजी से भी अपना काम आरंभ कर सकते हैं व अपनी आथिर्क स्थिति मजबूत व आसान बना सकते हैं | गांव गांव में चल रह