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समर्थन और सहायता : दिव्यांग व्यक्तियों के लिए समाज सेवाओं की अद्वितीय पहल

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राजस्थान समग्र कल्याण संस्थान संस्था सदा ही दिव्यांगों के कार्य हेतु प्रयासरत में प्रत्यनशील है। समाज के इस उपेक्षित वर्ग को हमेशा किसी न किसी मदद की आवश्यकता रहती ही है। हमारे द्वारा की गई एक जरा सी मदद से उनके विकास की कुछ राहें संभव हो जाती है। हमारे गांव व समाज में कई दृष्टिबाधित, मूकबधिर, तथा शारीरिक रूप से दिव्यांग निराश्रित ऐसे व्यक्तियों का जिनके जीवन यापन के लिए स्वयं का ना तो कोई साधन है और ना ही व किसी प्रकार का ऐसा परिश्रम कर सकते हैं जिससे वह समस्या से घिरे रहते हैं। व आर्थिक रूप से भी सशक्त नहीं होते कि स्वयं की समस्या हल कर सके। विकलांग का मुख्यता निम्न प्रकार की होती है। दृष्टिबाधित, श्रवण बाधित,वाक बाधित, चलन बाधित, मानसिक रोगी, मानसिक मंदता वह बहु विकलांगता से ग्रस्त व्यक्ति होते हैं। विकलांगता में व्यक्तियों को अनेक प्रकार की चुनौतियों और समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इस कारण से मन में निराशा, हताशा आदि के भाव आना स्वाभाविक होता है। हम ऐसे तरीके खोजने पढ़ते हैं जिससे उनका मानसिक संतुलन बना रहे और वह अपनी मानवियता न खोये इसके लिए संस्था द्वारा ऐसे व्यक्तियों को चश्

मेहनत और ईमानदारी से स्वरोजगार की ओर: रुकमा की यात्रा

 मेरा नाम रुकमा है। मैं पीसांगन गांव में रहती हूं। मेरा परिवार बेहद गरीब है। मेरे तीन लड़कियां हैं। मेरे पति कभी कभी फुटकर मजदूरी करते हैं। मैं भी मजदूरी करके अपना घर चलाती हूं। मैं जैसे तैसे अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ाई हेतु भेज रही हूं जिससे वह साक्षर हो सके। मुझे एक दिन पंचायत से पता चला कि हमारे यहां राजस्थान समग्र कल्याण संस्थान संस्था द्वारा स्वयं सहायता समूह का कार्यक्रम करवाया जा रहा है। मैंने उसमें भाग लिया और एक समूह से जुड़ी धीरे-धीरे मुझे इसकी बारीकियाँ समझ में आने लगी और मैं अपनी छोटी-छोटी बचत उसमें जमा करने लगी और आपसे ऋण सहयोग से अपने घर की जरूरत को पूरा कर उस ऋण को चुकाने लगी। फिर संस्था द्वारा स्वरोजगार हेतु बैंक से हमें एक बड़ा लोन करवाया गया जिसको 2 वर्ष में पूर्ण अदा करना था। मैंने उन पैसों से अपनी एक लकड़ी की केबिन बनवाई और उसमें मनिहारी ( महिला श्रृंगार ) का सामान विक्रय करने लगी। मुख्य बाजार में मेरी केबिन होने की वजह से मेरी आमदनी अच्छी खासी होने लगी। धीरे-धीरे फिर और सामान मैंने अपनी केबिन में डाला। अब मुझे प्रति माह 10000 से 12000 की आय प्राप्त होने ल

बाधाओं को तोड़ना: उद्यमिता के माध्यम से महिला सशक्तिकरण संघर्ष से सफलता तक

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 मेरा नाम लाडू कंवर है और मैं पुष्कर के नजदीक डूंगरिया कला गांव में रहती हूं। मैं एक विधवा एकल महिला हूं घर में हालात सही नहीं है | घर के काम के अलावा मैं नरेगा में भी जाती हूं और उसी से अपना भरण पोषण करती हूं। मैं जीवन में कुछ करना चाहती हूं। मगर ज्ञान न होने की वजह से मेरे कदम पुनः पीछे आ जाते हैं। फिर एक दिन हमें पता चला कि गांव में राजस्थान समग्र कल्याण संस्थान संस्था के द्वारा महिलाओं के लिए उद्यमिता वह लीडरशिप प्रशिक्षण कार्यक्रम रखा जा रहा है, जिसमें महिलाओं को उद्यमिता वह लीडरशिप की संपूर्ण जानकारी प्रदान की जायेगी | गाँव के नजदीक सामुदायिक भवन में इस कार्यशाला का आयोजन किया गया | जिसमें गांव की अधिक से अधिक महिलाएं पधारी | कार्यक्रम में संस्था के प्रतिनिधित्व द्वारा भारत के कुटीर उद्योग , हाथ करघा ,उघोग,पशुपालन,बैंकिंग,बचत व कई मुद्दों पर चर्चा की गई और बताया गया। किस तरह हम छोटी पूंजी से भी अपना घरेलू व्यवसाय चालू कर सकते हैं और अपनी आमदनी के स्त्रोत को उत्पन्न कर आर्थिक सशक्त जीवन व्यतीत कर सकते हैं। कार्यक्रम में पोस्टर प्रतियोगिता,प्रश्नोत्तरी,भाषण,खेलकूद के माध्यम से विस्