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मेक ए विश कार्यक्रम के तहत स्ट्रीट बच्चों को ट्रैक सूट व् मिठाई का वितरण

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राजस्थान समग्र कल्याण संस्थान द्वारा मेक ए विश कार्यक्रम के तहत स्ट्रीट बच्चों को ट्रैक सूट व् मिठाई का वितरण किया गया। संस्थान द्वारा शहर के लगभग 26 स्थानों पर 525 बच्चों को ट्रैक सूट दिया गया।  संस्था हर सर्दी के मौसम में इन जरूरतों से वंचित बच्चों को बचाव हेतु पूर्ण ध्यान रखती है।  यह समाज के वो वंचित परिवारों के बच्चें होते है जो प्रकार से अपनी जरूरतों व् आवश्यकताओ की नहीं कर पाते है और न ही अपने तन का बचाव कर पाते है। समाज का यह वर्ग सदा कोई न कोई अभाव में जीवन यापन करता रहता है।  बीते कई दिनों में मौसम में काफी बदलाव देखने को मिल रहा है। ठंड को देखते हुये संस्था ने यह कार्यक्रम किया। शहर की इन गरीब बस्तियों में रहने वाले गरीब परिवार के बच्चें सर्दी के इस मौसम में ठिठुरन को मजबूर है।  राजस्थान समग्र कल्याण संस्थान का यह मानना है यह कार्य मात्र गर्म वस्त्रों की वितरण ही नहीं करेगा बल्कि सर्दी से बचाव कर उनके शरीर व् प्राणों की रक्षा भी करेगा। जो उनके लिए यथा संभव नहीं हो पाता है।  कही न कहीं चाह कर भी यह प्रयास ये लोग नहीं कर पाते क्योंकि गरीबी का जाल इनको ज...

"विकलांगता के प्रति संवेदनशीलता: विश्व विकलांगता दिवस पर राजस्थान समग्र कल्याण संस्थान का प्रेरणादायक कार्य

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विकलांगता या दिव्यांगता एक शारारिक अक्षमता है जो सार्थक रूप में कार्य करने में हमे असक्षम बनाती है। यह शरीर में कई प्रकार से हो सकती है।  विकलांगता कोई अभिशाप नहीं है अपितु हमारी मानसिकता प्रबल न होने की वजह है।  कई बार इसकी वजह जन्मजात होती है तो कई बार दुर्घटनाओं के कारण भी शरीर में विकलांगता आ जाती है।  राजस्थान समग्र कल्याण संस्थान विगत कई वर्षो से इनके साथ कई प्रकार के कार्य कर रही है।  जिसमे उनकी समस्याओं को जानकार उसे दूर करने का यथासंभव प्रयास किया जाता है।  इन्हे भी समाज का हिस्सा मानकर सामाजिक कार्यो के लिए प्रेरित किया जाता है।  हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी राजस्थान समग्र कल्याण संस्थान द्वारा विश्व विकलागंता दिवस नजदीक के केसरपुरा ग्राम में आयोजित किया गया।  जिसमें संभाग के बहुत से विकलांगों ने इस कार्यक्रम में शिरकत की।  संस्था द्वारा इनके साथ हर्षोउल्लास पूर्वक यह कार्यक्रम मनाया गया।  जिसमें सरस्वती वंदना करके माल्यापर्ण किया गया।  इसके पश्चायत बच्चों द्वारा नृत्य, गायन, अभिभाषण, खेलकूद, नाटक मंचन, व् विविध प्रकार की सांस्...

बच्चों को शारीरिक सुरक्षा और आत्म-संरक्षण के बारे में जागरूकता"

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हमारी इंसानी प्रवर्ति में बहुत सारे अहसास छुपे होते है जो कभी दिखाई नहीं देते है परन्तु उन अहसासों को हम महसूस अवश्य कर सकते है कुछ अहसास या शारारिक स्पर्श सकारात्मक होते है जबकि कुछ नकारात्मक प्रभाव वाले होते है वहां व्यक्ति की प्रवृति व् नियत का हमे पता चलता है ! कोई व्यक्ति आपके शरीर के उस हिस्से को छूता है जहां आप नहीं चाहते की कोई उसे छुये तो वह बुरा स्पर्श कहलाता है ! और यदि कोई आपको टच करता है और आपको अच्छा लगता है या स्नेह की अनुभूति का अहसास होता है तो यह गुड टच कहलाता है हमारे समाज में बढ़ती उम्र की  स्ट्रीट, झुग्गी झोपडी, निचली बस्तियों के बच्चों यह ज्ञान देना अति आवश्यक है ताकि वह अपनी सुरक्षा को समझे और इसे पूरा करें !  राजस्थान समग्र कल्याण संस्थान द्वारा हर वर्ष हजारों स्कूली बालिकाओं के साथ गुड टच बेड टच का कार्यक्रम किया जाता है जिससे उनको विभिन्न तरह से शारारिक स्पर्श के माध्यम से अच्छे व् बुरे स्पर्श के माध्यम से अच्छे व् बुरे स्पर्श का ज्ञान प्रदत किया जाता है ! बालिका के बढ़ते शरीर व् उम्र के साथ ही माता -पिता व् शिक्षक के द्वारा यह जानकारियां प्रारंभ ...

बालिका शिक्षा और बाल विवाह पर जागरूकता

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अपनी बेटी को अरमानों की डोली में बैठकर अपने ससुराल जाना किस बाप का एक अच्छा सपना नहीं होता है सब पिताओं का यही सपना उनकी जिंदगी भर की कमाई होता है ! बेटी का पालना , उसे पढ़ाना, बड़ा करना, समाज के सभी विषयों का ज्ञान देना फिर जब एक दिन बेटी ब्याह के लायक हो जाती है ! तो दिल पर अरमानों का एक बड़ा सा पत्थर रख कर उसको विदा करना जिंदगी का सबसे मार्मिक क्षण होता है ! जब बरबस ही उसकी आखों के आँसू उस पिता की विवशता को दर्शाते है ! यह क्षण अत्यंत यादगार होता है ! इसके विपरीत जब एक पिता के द्वारा अपनी नाबालिग  बच्ची का जब बाल विवाह किया जाता है तो यह एक हत्या के सामान करा जाने वाला कृत्य कहलाता है ! जो उस बच्ची का बचपन खा जाता है ! और उसे नर्क की आग में जलने को जिंदगी भर के लिए डाल देता है !  मेरा नाम बलवंत सिंह है मैं पेशे से एक कारीगर हूँ मेरे परिवार में मेरी पत्नी ,माता पिता, व् 4 लड़किया है जो क्रमशः 14, 12, 10, 8 वर्ष की है ! जो की सभी स्कूल में अध्ययनरत है ! मेरे परिवार में जब मेरी बहन की शादी  की तब वह नाबालिग थी जो एक बच्चे को जन्म देने के बाद चल बसी ! इस वजह से मेरे दिल में यह...

शिक्षा और जागरूकता: बाल विवाह के खिलाफ लड़ाई किए गए प्रयास और रणनीतियाँ

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मेरा नाम मनोज तिवारी है मैं ग्राम पदमपुरा में रा.उ.मा.वि में सरकारी टीचर के रूप में कार्यरत हूँ ! इस गांव में रावत व् गुर्जर जाती बाहुल्य रूप में निवास करती है जिसमे काफी हद तक निरक्षरता विद्यमान है !  जिसके चलते इनके रीती रिवाजो में बहुत सारी  कुरीतियाँ  शामिल है ! जो समाज में हमे नकारात्मकता का सन्देश देती है ! और देश व् राष्ट्र को पीछे धकेलने का कार्य करती है ! कुछ कुरीतियों को जड़ से मिटाना इतना संभव नहीं हो सकता है इस प्रकिर्या में सभी के साथ का होना अति आवश्यक है तभी हम स्वस्थ व् स्वच्छ समाज को पटल पर ला पाएंगे ! बाल विवाह वो दंश है जो एक नहीं समाज की बहुत सारी जिंदगियाँ बर्बाद करती है ! इसमें बालिका का बालपन छिन्न लिया जाता है ! जो उसे नर्क में धकेलने के लिए काफी है ! यहाँ समाज के हर व्यक्ति को इस विषय की सभी नकारात्मक बातों के लिए सोचना बहुत जरुरी है तभी हम बदलाव की किरण को जाग्रत कर पाएंगे !   हमारी स्कूल में पिछले 4-5 वर्षो से जरूरतमंद, वंचित, अनाथ, बेसहारा, गरीब, निर्धन, विकलांग, मानसिक रूप से पीड़ित आदि बालिकाओ की मदद के लिए यह संस्था बेहद सराहनीय व् प...

लैंगिक असमानता: महिलाओं के खिलाफ भेदभाव और उसकी जटिलताएँ

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लैंगिक असमानता का तात्पर्य लैंगिक आधार पर महिलाओं के साथ भेदभाव से है ! परम्परागत रूप से समाज में महिलाओं को कमजोर वर्ग के रूप में देखा जाता है ! वे घर और समाज दोनों जगहों पर शोषण, अपमान, और भेदभाव से पीड़ित होती है ! महिलाओं के खिलाफ भेदभाव दुनिया में हर जगह प्रचलित है ! यह असमानता कई प्रकार से हो सकती है ! इसमें रोजगार और पदोन्नति के मामले में महिलाओ को अक्सर भेदभाव का सामना करना पड़ता है ! नौकरी के अवसरों और वेतनमान के मामले में पुरुषों को महिलाओँ पर प्राथमिकता दी जाती है ! स्वामित्य असामनता में कई समाजों में सम्पति का स्वामित्व असमान है !  जहा भी पुरुष प्रधान समाज होगा वह स्त्री सदा तिरस्कार पूर्ण जीवन व्यतीत करेगी ! यहाँ पर स्त्री को इतनी प्राथमिकता नहीं दी जायेगी ! ये अक्सर भेदभाव या लिंगवाद के द्वारा ही उत्पन्न होता है ! इसके मुख्य कारण गरीबी, लिंग, धर्म, और जाति है ! लैंगिक भेदभाव, सामाजिक मानदंडो और प्रयासों के प्रचलन के कारण, लड़कियों के बाल विवाह, किशोरावस्था  में गर्भधारण, बाल घरेलु कार्य, ख़राब शिक्षा प्रणाली, ख़राब  स्वास्थ्य, यौन शोषण, शोषण और हिंसा की संभावना ब...

भारत में गौरैया संरक्षण का महत्व: एक सामुदायिक प्रयास

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भारत में पाई जाने वाली गौरैया एक बहुत सामाजिक पक्षी है। यह पक्षी झुंड बनाकर रहता है और सामुदायिक आवास करता है। यह बहुत छोटे और प्रभावी होते हैं। यह विभिन्न प्रकार की जलवायु में रह सकते हैं। यह उन भागों में भी ज्यादा मिलते हैं जहां छोटे-मोटे कीट पतंगे होते हैं जिनको यह अपना भोजन बनाती है। यह सभी प्रकार का भोजन खा जाती हैं, जिसमें दाना,पानी,फूल रस आदि होते हैं। यह वर्ष में दो बार प्रजनन कर 5 से 6 अंडे देती हैं। यह बहुत घरेलू पक्षी है। यह मुख्यतः उत्तरी अफ्रीका ,यूरोप,एशिया में पाई जाती है। यह एक छोटी चिड़िया है जो हल्के भूरे रंग या सफेद रंग में होती है। गौरैया बीज,अनाज,और लार्वा को भी खाती है और प्रभावी  किट नियंत्रक एजेंट साबित होती है। परागकण पौधों के लिए एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जो गौरैया द्वारा की जाती है क्योंकि वे अपने भोजन की खोज के दौरान पौधों के फूलों पर भी जाती हैं और परागकणों को स्थानांतरित करने में अप्रत्यक्ष रूप से मदद करती है। बार-बार चहकने की आवाज से इनको आसानी से पहचाना जा सकता है। उनकी प्रजनन क्षमता उपनगरों व गांव में अधिक है जहां छोटे-मोटे कीट-पतंगों की प्रचुरता ह...

चिड़ियाघर द्वारा वन्य जीवन का संरक्षण: एक समर्पित प्रयास एक नई पहल

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मेरा नाम अविनाश आहूजा है मैं एक पर्यावरण विद हूं और एक कॉलेज में वनस्पति विज्ञान का प्रोफेसर हूं | हमारे भारत में कई तरह के पशु पक्षी निवास करते हैं उनमें से हर घर के बाहर आंगन में पहले बहुतायत गौरैया पक्षी पाई जाती थी | परंतु वृक्षों की अंधा धुन्ध कटाई व पर्यावरण प्रदुषण की वजह से इनकी प्रजाति लुप्त होने के कगार पर आ गई है इसके लिए कुछ समय पूर्व मुझे पता चला की अजमेर की राजस्थान समग्र कल्याण संस्था द्वारा इस प्रजाति को बचाने का एक अभियान चलाया जा रहा है संस्था से सम्पर्क करने पर उन्होंने कार्यालय में आने का मुझे निमंत्रण दिया  फिर मैं संस्था के पास या और उनसे बातचीत कर देखा कि संस्था द्वारा विभिन्न संस्थाओं, क्रार्यालयो , शिक्षण संस्थान बाग बगीचे में हॉस्पिटल थाने व और ऐसे स्थान जहां पेड़ों की संख्या बहुत अधिक है वहां चिड़ियाघर में उनके खाने हेतु फीडर की व्यवस्था की गई है जिसके नतीजे उनकी संख्या में आश्चर्यजनक रूप से वृद्धि देखी गई है | उनको देखकर लगा मुझे जैसे मेरे बचपन के वो दिन चिड़िया उड़ खेल की याद मेरे मन मस्तिष्क में पुनः ताजा हो गई। संस्था द्वारा ज्ञात हुआ प्राकृतिक र...