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बालिका शिक्षा और बाल विवाह पर जागरूकता

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अपनी बेटी को अरमानों की डोली में बैठकर अपने ससुराल जाना किस बाप का एक अच्छा सपना नहीं होता है सब पिताओं का यही सपना उनकी जिंदगी भर की कमाई होता है ! बेटी का पालना , उसे पढ़ाना, बड़ा करना, समाज के सभी विषयों का ज्ञान देना फिर जब एक दिन बेटी ब्याह के लायक हो जाती है ! तो दिल पर अरमानों का एक बड़ा सा पत्थर रख कर उसको विदा करना जिंदगी का सबसे मार्मिक क्षण होता है ! जब बरबस ही उसकी आखों के आँसू उस पिता की विवशता को दर्शाते है ! यह क्षण अत्यंत यादगार होता है ! इसके विपरीत जब एक पिता के द्वारा अपनी नाबालिग  बच्ची का जब बाल विवाह किया जाता है तो यह एक हत्या के सामान करा जाने वाला कृत्य कहलाता है ! जो उस बच्ची का बचपन खा जाता है ! और उसे नर्क की आग में जलने को जिंदगी भर के लिए डाल देता है !  मेरा नाम बलवंत सिंह है मैं पेशे से एक कारीगर हूँ मेरे परिवार में मेरी पत्नी ,माता पिता, व् 4 लड़किया है जो क्रमशः 14, 12, 10, 8 वर्ष की है ! जो की सभी स्कूल में अध्ययनरत है ! मेरे परिवार में जब मेरी बहन की शादी  की तब वह नाबालिग थी जो एक बच्चे को जन्म देने के बाद चल बसी ! इस वजह से मेरे दिल में यह डर  व्याप्त ह

बाल विवाह का अंत: राजस्थान समग्र कल्याण संस्थान की पहल

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  बाल विवाह कानून के मुताबिक किसी भी बच्चे का शादी यानी नाबालिग उम्र में विवाह कर देना होता है। इनमें लड़के की उम्र 21 व लड़की की उम्र 18 वर्ष होनी चाहिए। इससे कम उम्र किसी की नहीं होनी चाहिए। पिछले एक दशक से इस हानिकारक प्रथा में लगातार गिरावट के बावजूद बाल विवाह अभी भी हमारे समाज में व्यापक बना हुआ है। दुनिया भर में लगभग 5 में से एक बच्चे की शादी बचपन में कर दी जाती है। सांस्कृतिक और सामाजिक शिक्षा में कमी और लैंगिक असमानता के कारण बाल विवाह होते हैं। बाल विवाह लड़की के भविष्य को सुरक्षित करने और उसे गरीबी यौन संकीर्णता से बचाने के तरीके के रूप में देखा जाता है। बाल विवाह का सीधा असर न केवल लड़कियों पर बल्कि उनके परिवार और समुदाय पर भी होता है। जिस लड़की की शादी कम उम्र में हो जाती है, उसके स्कूल से निकल जाने की संभावना बढ़ जाती है तथा उसके कमाने और समुदाय में योगदान देने की क्षमता भी कम हो जाती है जिससे उनमें कई घातक बीमारियां हो जाती है। वह उन्हें घरेलू हिंसा का शिकार भी होना पड़ता है। राजस्थान समग्र कल्याण संस्थान द्वारा प्रचार प्रसार के माध्यम से ग्रामीणों को प्रेरित किया जाता है