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घर से दुकान तक: मंजू कंवर का स्वरोजगार सफलता का पथ

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 मेरा नाम मंजू कंवर है। मैं एक गृहणी हूं।मेरे पति की साइकिल पंचर की दुकान है। व घर में दो बच्चे हैं। हमारे आर्थिक स्थिति बेहद कमजोर है। घर की जरूरत की जितनी आय प्राप्त नहीं हो पाती। इसलिए घर में कुछ ना कुछ अब आभाव बना रहता है। सबसे ज्यादा चिंता हमें हमारे बच्चों की पढ़ाई व उनके भविष्य को लेकर होती है। मध्यम श्रेणी के इंसान को इस हेतु बहुत अधिक परिश्रम करना पड़ता है। इसको देखते हुए हमारे गांव में 1 दिन राजस्थान समग्र कल्याण संस्थान के द्वारा SHG कार्यक्रम रखा गया जिसमें उन्होंने बचत, ऋण,आय, स्वरोजगार व बैंक संबंधी जानकारियां हमें प्रदत कराई गई परंतु मैं एक राजपूत परिवार की महिला हूँ जो कमाने के लिए घर से बाहर नहीं जा सकती है। इस उलझन से मैं स्वयं का निर्णय नहीं ले पा रही थी। फिर संस्था द्वारा हमें दुकान कार्य के लिए प्रोत्साहित किया | यह कार्य घर में रहकर भी किया जा सकता है। इस विचार से मैं और मेरा परिवार राजी हो गया। फिर मेरी कुछ बचत, व ऋण को मिलाकर संस्था के सहयोग से हमने अपना परचूनी की दुकान कार्य प्रारंभ किया। दुकान मैंने घर के बाहर ही बनवाई और उसमें रोजमर्रा की जरूरतों के सभी सामान