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विशिष्ट पोस्ट

Stand Together Against COVID-19

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Stand Together Against COVID-19 As we all are aware of the pandemic Novel COVID-19 that has engulfed the entire world, and poses a serious threat to the well-being and mobility of each individual. COVID-19 can cause mild to severe illness; most severe illness occurs in older adults. At RSKS India we are extremely concerned and conscious about the health of our employees as well as our partners, Donors and thousands of beneficiaries who are a part of the family and to ensure, this RSKS Team members are also doing awareness programs at all our workshops and training centre to ensure the safety of people. RSKS India encourages everyone to take precautions by social distancing, following proper sanitary protocols and reaching out to health authorities in suspected cases. We would also like to take this opportunity to reiterate the World Health Organisation guidelines and urge you to take the necessary precautions to safeguard yourself from COVID-19; Wash yo...

"स्वतंत्रता दिवस समारोह: शिक्षा, सशक्तिकरण और संस्कृति का उत्सव"

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आर.एस.के.एस. इंडिया द्वारा संचालित पाठशाला में 15 अगस्त का आयोजन बड़े ही धूमधाम से मनाया गया। यह दिन भारत की आज़ादी की याद में हर वर्ष पूरे देश में हर्षोल्लास से मनाया जाता है, और इस अवसर पर पाठशाला में विशेष कार्यक्रम आयोजित किया गया। समारोह की शुरुआत राष्ट्रगान से हुई, जिसके बाद ध्वजारोहण किया गया। तिरंगा झंडा लहराते ही पूरे वातावरण में देशभक्ति की भावना उमड़ पड़ी। उपस्थित सभी छात्राएं, शिक्षकगण और अभिभावक इस ऐतिहासिक क्षण का हिस्सा बने। इस आयोजन की सबसे ख़ास बात यह रही कि इसमें पाठशाला की सभी बालिकाओं ने सक्रिय रूप से भाग लिया। कुछ बालिकाओं ने देशभक्ति गीत प्रस्तुत किए, तो कुछ ने रंगारंग नृत्य और नाटकों के माध्यम से स्वतंत्रता संग्राम के वीरों को श्रद्धांजलि दी। एक समूह ने स्वतंत्रता सेनानियों के जीवन पर आधारित नाटक प्रस्तुत किया, जिसमें झांसी की रानी, महात्मा गांधी, भगत सिंह जैसे महानायकों की भूमिका निभाई गई। इन प्रस्तुतियों ने दर्शकों को भावविभोर कर दिया और बच्चियों के आत्मविश्वास और प्रतिभा को भी उजागर किया। समारोह के अंत में संस्था के पदाधिकारियों और शिक्षकों ने स्वतंत्रता का मह...

"उन्नत बीजों से बदलती तक़दीर: ग्रामीण असक्षम महिलाओं की नई शुरुआत"

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भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में अनेक महिलाएँ आज भी सीमित संसाधनों और आर्थिक असक्षमता के कारण कृषि कार्य में पिछड़ जाती हैं। इनके पास ज़मीन तो होती है, पर सही जानकारी, उन्नत तकनीक और बेहतर बीजों की कमी के कारण वे अपनी ज़मीन का पूरा लाभ नहीं उठा पातीं। ऐसे में जब किसी संस्था या सरकारी योजना के माध्यम से उन्हें उन्नत बीज प्रदान किए जाते हैं, तो यह उनके जीवन में एक नई उम्मीद की किरण बनकर आता है। यह केवल बीज नहीं, बल्कि आत्मनिर्भरता की दिशा में पहला कदम होता है। ऐसी ही एक कहानी है एक ग्रामीण असक्षम महिला की, जिसे एक स्वयंसेवी संस्था द्वारा उन्नत बीज दिए गए। पहले वह अपने छोटे से खेत में पारंपरिक बीजों से बहुत ही कम पैदावार ले पाती थीं, जिससे घर की जरूरतें भी पूरी नहीं हो पाती थीं। लेकिन उन्नत बीज मिलने के बाद उन्होंने नई तकनीक से खेती करना शुरू किया। समय पर सिंचाई, जैविक खाद और संस्था द्वारा दी गई मार्गदर्शन से उनकी फसल न केवल अच्छी हुई, बल्कि बाज़ार में अच्छे दामों में बिकी। इससे उनकी आय में उल्लेखनीय वृद्धि हुई और वह अपने परिवार को बेहतर जीवन देने में सक्षम हो सकीं। अब वह अपने अनुभव गाँव क...

"सशक्त महिला, सशक्त समाज: SHG से मिली नई पहचान"

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  ग्रामीण भारत में महिलाओं को आत्मनिर्भर और सशक्त बनाने की दिशा में अनेक संस्थाएँ कार्य कर रही हैं, जिनमें आरएसकेएस (राजस्थान समग्र कल्याण संस्थान) द्वारा संचालित स्वयं सहायता समूह (SHG) एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। इन समूहों का उद्देश्य महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाना, उनमें नेतृत्व की भावना विकसित करना और उनके आत्मविश्वास को बढ़ाना है। ऐसे ही एक SHG की सदस्य एक ग्रामीण महिला हैं, जिन्होंने अपने परिश्रम, लगन और आत्मबल से मनीहारी (सौंदर्य प्रसाधन एवं घरेलू उपयोग की वस्तुएँ बेचने का कार्य) को अपने जीवन का साधन बना लिया है। यह कार्य उन्होंने सीमित संसाधनों में शुरू किया, लेकिन आज वे अपने गांव की अन्य महिलाओं के लिए प्रेरणा बन चुकी हैं। यह महिला प्रतिदिन सुबह घर के कामों के साथ-साथ अपने व्यवसाय के लिए समय निकालती हैं। उन्होंने आरएसकेएस द्वारा प्रदान की गई ट्रेनिंग और लघु ऋण की सहायता से मनीहारी का काम आरंभ किया था। धीरे-धीरे उन्होंने अपने ग्राहकों की पसंद और जरूरतों को समझना शुरू किया और उसी के अनुसार अपना सामान रखना शुरू किया। उनकी ईमानदारी, व्यवहार-कुशलता और गुणवत्ता ने ...

''बचपन से समानता की शिक्षा: एक चित्रकारी पहल''

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राजस्थान समग्र कल्याण संस्थान द्वार (आरएसकेएस इंडिया) द्वारा हाल ही में ग्रामीण क्षेत्र के विद्यालयों में लैंगिक समानता विषय पर एक विशेष चित्रकला प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। इस प्रतियोगिता का उद्देश्य बच्चों को लैंगिक समानता के महत्व से परिचित कराना और उनके अंदर इस विषय पर जागरूकता बढ़ाना था। प्रतियोगिता में बड़ी संख्या में छात्र-छात्राओं ने उत्साहपूर्वक भाग लिया और अपनी राय को रचना के माध्यम से प्रस्तुत किया। बच्चों ने समाज में लड़का-लड़की के बीच समान अधिकार, शिक्षा, खेल, स्वास्थ्य और रोजगार के अवसरों को दर्शाया और यह संदेश दिया कि भलाई केवल अधिकार नहीं बल्कि सामाजिक जिम्मेदारी भी है। इस प्रतियोगिता के माध्यम से बच्चों ने यह समझाने का प्रयास किया कि किसी भी समाज की प्रगति के लिए पुरुष और महिला दोनों को शामिल करना जरूरी है। बच्चों के निबंध में यह स्पष्ट है कि वे केवल रंग से नहीं, बल्कि अपने विचारों से भी लैंगिक भेदभाव को खत्म करने का संदेश दे रहे हैं। कई बच्चों ने महिलाओं की शिक्षा, आत्मनिर्भरता और समाज में अपनी भूमिका को बड़े पैमाने पर प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया। प्रतियोगिता के ...

"लैंगिक समानता की आवाज़: बालिकाओं का सशक्त नाट्य प्रस्तुतिकरण"

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  लैंगिक समानता आज के समय की एक अत्यंत महत्वपूर्ण आवश्यकता बन चुकी है। समाज के हर वर्ग में नारी को उसका अधिकार, सम्मान और स्वतंत्रता देना आवश्यक है। इसी दिशा में राजस्थान समग्र कल्याण संस्थान (RSKS India) द्वारा एक प्रभावशाली पहल की गई, जिसके अंतर्गत ग्रामीण विद्यालयों की बालिकाओं के माध्यम से लैंगिक समानता विषय पर एक सशक्त नाटक मंचित किया गया। यह नाटक न केवल मनोरंजन का माध्यम बना, बल्कि समाज को एक गहरी सोच और आवश्यक संदेश भी दिया। बालिकाओं ने इस प्रस्तुति में अपनी प्रतिभा, संवेदनशीलता और जागरूकता का ऐसा परिचय दिया जिसे देखकर उपस्थित दर्शक भावविभोर हो गए। इस नाटक में बालिकाओं ने सामाजिक ढांचे में व्याप्त लिंग भेद, बाल विवाह, शिक्षा में असमानता और घरेलू कार्यों में भेदभाव जैसे मुद्दों को अत्यंत प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया। उनके अभिनय, संवाद और भाव-भंगिमा ने यह स्पष्ट कर दिया कि वह केवल शिक्षा ही नहीं, बल्कि समाज में बदलाव की वाहक भी बन सकती हैं। नाटक के ज़रिए यह संदेश दिया गया कि लड़कियाँ भी हर क्षेत्र में लड़कों के बराबर हैं और उन्हें भी समान अवसर मिलना चाहिए। ग्रामीण पृष्ठभू...

"सड़क के बच्चों के साथ 6 दिवसीय शिक्षा शिविर – उम्मीद की पाठशाला"

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सड़क पर रहने वाले बच्चे अक्सर समाज की अनदेखी का शिकार होते हैं। उनके पास न तो शिक्षा की सुविधा होती है और न ही एक सुरक्षित जीवन का आधार। वे बचपन से ही काम में लग जाते हैं या गलियों में भीख मांगते हुए जीवन व्यतीत करते हैं। इन्हीं वंचित बच्चों को मुख्यधारा में लाने के उद्देश्य से RSKS India द्वारा एक 6 दिवसीय विशेष शिक्षा शिविर का आयोजन किया गया। इस शिविर का मुख्य उद्देश्य इन बच्चों को शिक्षा की ओर प्रेरित करना, उनके भीतर सीखने की रुचि पैदा करना और उन्हें आत्मसम्मान के साथ जीने की दिशा में आगे बढ़ाना था। यह शिविर ऐसे स्थानों पर लगाया गया जहां ये बच्चे अधिक संख्या में मिलते हैं, ताकि वे सहज रूप से जुड़ सकें और शिक्षा का अनुभव कर सकें। शिविर में बच्चों को शिक्षा के साथ-साथ मनोरंजन, रचनात्मकता और जीवन कौशल से जोड़ने के लिए विभिन्न गतिविधियाँ कराई गईं। बच्चों को हिंदी, गणित और सामान्य ज्ञान की प्रारंभिक जानकारी सरल भाषा और रोचक तरीकों से दी गई। रंगीन किताबें, फ्लैश कार्ड, चित्रों और कहानियों के माध्यम से उन्हें सीखने में रुचि पैदा की गई। इसके अलावा, चित्रकला, समूह गीत, खेलकूद, और ‘कहानी सुना...

“मदर टेरेसा – सेवा, करुणा और मानवता की मूरत”

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मदर टेरेसा का नाम लेते ही मन में सेवा, त्याग और करुणा की तस्वीर उभर आती है। उनका जन्म 26 अगस्त 1910 को मैसेडोनिया के स्कॉप्जे शहर में हुआ था। उनका असली नाम एग्नेस गोंझा बोयाजीजू था। मात्र 18 वर्ष की उम्र में उन्होंने नन बनने का निर्णय लिया और आयरलैंड की 'लोरेटो कॉन्वेंट' में प्रवेश लिया। इसके बाद वह भारत आईं और कोलकाता में शिक्षा के क्षेत्र में कार्य करने लगीं। लेकिन उनका मन गरीब, असहाय और बीमार लोगों की सेवा में रमता था। उन्होंने अनुभव किया कि शिक्षा से अधिक ज़रूरत समाज के उपेक्षित और पीड़ित वर्ग की देखभाल की है। यही सोच उन्हें एक नई राह पर ले गई। मदर टेरेसा ने 1950 में "Missionaries of Charity" नामक संस्था की स्थापना की, जिसका मुख्य उद्देश्य गरीबों, कुष्ठ रोगियों, अनाथों और लाचार लोगों की सेवा करना था। उन्होंने कोलकाता की गलियों में भटकते हुए बीमारों को उठाकर अपने आश्रम में लाया और उन्हें मान-सम्मान के साथ जीवन जीने का अवसर दिया। उनके सेवा कार्य केवल भारत तक ही सीमित नहीं रहे, बल्कि यह मिशन धीरे-धीरे 100 से अधिक देशों में फैल गया। उन्हें यह विश्वास था कि "हम मह...