“मदर टेरेसा – सेवा, करुणा और मानवता की मूरत”
मदर टेरेसा का नाम लेते ही मन में सेवा, त्याग और करुणा की तस्वीर उभर आती है। उनका जन्म 26 अगस्त 1910 को मैसेडोनिया के स्कॉप्जे शहर में हुआ था। उनका असली नाम एग्नेस गोंझा बोयाजीजू था। मात्र 18 वर्ष की उम्र में उन्होंने नन बनने का निर्णय लिया और आयरलैंड की 'लोरेटो कॉन्वेंट' में प्रवेश लिया। इसके बाद वह भारत आईं और कोलकाता में शिक्षा के क्षेत्र में कार्य करने लगीं। लेकिन उनका मन गरीब, असहाय और बीमार लोगों की सेवा में रमता था। उन्होंने अनुभव किया कि शिक्षा से अधिक ज़रूरत समाज के उपेक्षित और पीड़ित वर्ग की देखभाल की है। यही सोच उन्हें एक नई राह पर ले गई।
मदर टेरेसा ने 1950 में "Missionaries of Charity" नामक संस्था की स्थापना की, जिसका मुख्य उद्देश्य गरीबों, कुष्ठ रोगियों, अनाथों और लाचार लोगों की सेवा करना था। उन्होंने कोलकाता की गलियों में भटकते हुए बीमारों को उठाकर अपने आश्रम में लाया और उन्हें मान-सम्मान के साथ जीवन जीने का अवसर दिया। उनके सेवा कार्य केवल भारत तक ही सीमित नहीं रहे, बल्कि यह मिशन धीरे-धीरे 100 से अधिक देशों में फैल गया। उन्हें यह विश्वास था कि "हम महान कार्य नहीं कर सकते, लेकिन छोटे-छोटे कार्यों को बहुत प्रेम से कर सकते हैं।" उनकी यह सोच ही उन्हें विश्व में मानवता की सबसे बड़ी प्रतीक बना गई। उन्होंने सेवा को धर्म, जाति, भाषा और राष्ट्र से ऊपर रखा और सबको एक समान दृष्टि से देखा।
मदर टेरेसा को उनके सेवा कार्यों के लिए कई अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, जिनमें नोबेल शांति पुरस्कार (1979) और भारत रत्न (1980) प्रमुख हैं। लेकिन उनके लिए यह सम्मान केवल माध्यम थे – उनका असली इनाम था ज़रूरतमंद की मुस्कान और संतोष। उनका जीवन आज भी उन सभी लोगों के लिए प्रेरणा है जो समाज के लिए कुछ करना चाहते हैं। 5 सितंबर 1997 को मदर टेरेसा का देहांत हो गया, लेकिन उनके विचार, उनका समर्पण और मानवता के लिए उनका योगदान अमर हो गया। आज भी "Missionaries of Charity" उनके मार्गदर्शन में हजारों गरीबों और जरूरतमंदों की सेवा कर रही है। मदर टेरेसा ने यह सिखाया कि अगर मन में सच्ची भावना हो, तो कोई भी व्यक्ति किसी का जीवन बदल सकता है।
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