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"सड़क के बच्चों के साथ 6 दिवसीय शिक्षा शिविर – उम्मीद की पाठशाला"

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सड़क पर रहने वाले बच्चे अक्सर समाज की अनदेखी का शिकार होते हैं। उनके पास न तो शिक्षा की सुविधा होती है और न ही एक सुरक्षित जीवन का आधार। वे बचपन से ही काम में लग जाते हैं या गलियों में भीख मांगते हुए जीवन व्यतीत करते हैं। इन्हीं वंचित बच्चों को मुख्यधारा में लाने के उद्देश्य से RSKS India द्वारा एक 6 दिवसीय विशेष शिक्षा शिविर का आयोजन किया गया। इस शिविर का मुख्य उद्देश्य इन बच्चों को शिक्षा की ओर प्रेरित करना, उनके भीतर सीखने की रुचि पैदा करना और उन्हें आत्मसम्मान के साथ जीने की दिशा में आगे बढ़ाना था। यह शिविर ऐसे स्थानों पर लगाया गया जहां ये बच्चे अधिक संख्या में मिलते हैं, ताकि वे सहज रूप से जुड़ सकें और शिक्षा का अनुभव कर सकें। शिविर में बच्चों को शिक्षा के साथ-साथ मनोरंजन, रचनात्मकता और जीवन कौशल से जोड़ने के लिए विभिन्न गतिविधियाँ कराई गईं। बच्चों को हिंदी, गणित और सामान्य ज्ञान की प्रारंभिक जानकारी सरल भाषा और रोचक तरीकों से दी गई। रंगीन किताबें, फ्लैश कार्ड, चित्रों और कहानियों के माध्यम से उन्हें सीखने में रुचि पैदा की गई। इसके अलावा, चित्रकला, समूह गीत, खेलकूद, और ‘कहानी सुना...

“मदर टेरेसा – सेवा, करुणा और मानवता की मूरत”

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मदर टेरेसा का नाम लेते ही मन में सेवा, त्याग और करुणा की तस्वीर उभर आती है। उनका जन्म 26 अगस्त 1910 को मैसेडोनिया के स्कॉप्जे शहर में हुआ था। उनका असली नाम एग्नेस गोंझा बोयाजीजू था। मात्र 18 वर्ष की उम्र में उन्होंने नन बनने का निर्णय लिया और आयरलैंड की 'लोरेटो कॉन्वेंट' में प्रवेश लिया। इसके बाद वह भारत आईं और कोलकाता में शिक्षा के क्षेत्र में कार्य करने लगीं। लेकिन उनका मन गरीब, असहाय और बीमार लोगों की सेवा में रमता था। उन्होंने अनुभव किया कि शिक्षा से अधिक ज़रूरत समाज के उपेक्षित और पीड़ित वर्ग की देखभाल की है। यही सोच उन्हें एक नई राह पर ले गई। मदर टेरेसा ने 1950 में "Missionaries of Charity" नामक संस्था की स्थापना की, जिसका मुख्य उद्देश्य गरीबों, कुष्ठ रोगियों, अनाथों और लाचार लोगों की सेवा करना था। उन्होंने कोलकाता की गलियों में भटकते हुए बीमारों को उठाकर अपने आश्रम में लाया और उन्हें मान-सम्मान के साथ जीवन जीने का अवसर दिया। उनके सेवा कार्य केवल भारत तक ही सीमित नहीं रहे, बल्कि यह मिशन धीरे-धीरे 100 से अधिक देशों में फैल गया। उन्हें यह विश्वास था कि "हम मह...