मेहनत और ईमानदारी से स्वरोजगार की ओर: रुकमा की यात्रा


मेरा नाम रुकमा है। मैं पीसांगन गांव में रहती हूं। मेरा परिवार बेहद गरीब है। मेरे तीन लड़कियां हैं। मेरे पति कभी कभी फुटकर मजदूरी करते हैं। मैं भी मजदूरी करके अपना घर चलाती हूं। मैं जैसे तैसे अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ाई हेतु भेज रही हूं जिससे वह साक्षर हो सके। मुझे एक दिन पंचायत से पता चला कि हमारे यहां राजस्थान समग्र कल्याण संस्थान संस्था द्वारा स्वयं सहायता समूह का कार्यक्रम करवाया जा रहा है। मैंने उसमें भाग लिया और एक समूह से जुड़ी धीरे-धीरे मुझे इसकी बारीकियाँ समझ में आने लगी और मैं अपनी छोटी-छोटी बचत उसमें जमा करने लगी और आपसे ऋण सहयोग से अपने घर की जरूरत को पूरा कर उस ऋण को चुकाने लगी। फिर संस्था द्वारा स्वरोजगार हेतु बैंक से हमें एक बड़ा लोन करवाया गया जिसको 2 वर्ष में पूर्ण अदा करना था। मैंने उन पैसों से अपनी एक लकड़ी की केबिन बनवाई और उसमें मनिहारी ( महिला श्रृंगार ) का सामान विक्रय करने लगी।


मुख्य बाजार में मेरी केबिन होने की वजह से मेरी आमदनी अच्छी खासी होने लगी। धीरे-धीरे फिर और सामान मैंने अपनी केबिन में डाला। अब मुझे प्रति माह 10000 से 12000 की आय प्राप्त होने लगी। कभी-कभी त्योहारो पर मेरी बिक्री बहुत अधिक होने लगी, जिससे अब मेरे घर के आर्थिक हालात सुधरने लगे। इस कार्य में अपने पति को भी संलग्न कर लिया जिससे मुझे कुछ सहारा मिले। अब एक लड़की की शादी कर दी। वह दो लड़कियों को उच्च शिक्षा हेतु भेज रही हूं। इसके बाद मैंने स्वयं की एक बड़ी दुकान डाल ली। मेरी मेहनत रंग लाई जो गरीबी भरे दिन हमने गुजारे अब ऐसा नहीं था। मैं और मेरा परिवार इस आर्थिक गतिविधि से जुड़कर अपनी अच्छी आय प्राप्त कर रहा है। व जो भी जरूरतें परिवार में होती है उन्हें पूरा कर रहा है।


किसी ने सच कहा है अगर किस्मत साथ दे और हम मेहनत लगन, ईमानदारी ,कर्तव्य निष्ठा से कार्य करें तो अवश्य ही अपनी सफलता को प्राप्त करते हैं। किसी भी काम को प्रारंभ करने से पहले उसके सभी प्रारूपों का आंकलन करना बेहद आवश्यक है। राजस्थान समग्र कल्याण संस्थान के सहयोग व अथक प्रयासों से हमने जीवन में जानना कि हमारी छोटी-छोटी बचते हमें जीवन का एक नया मार्ग प्रशस्त कर सकती है।


आज का हमारा देश बदलता भारत है जहां एक और हम चंद्रमा पर अपने कदम रख चुके हैं। मंगल पर जा रहे हैं इस भारत की ग्रामीण महिलाओं की छवि हमें बदलनी होगी। गांव -गांव में हर महिला वर्ग को स्वरोजगार से जोड़ना होगा। जब तक हम आर्थिक रूप से सशक्त नहीं होंगे तब तक हम एक विकसित राष्ट्र की कल्पना नहीं कर सकते। सही मायनो में कहा जाए तो अब जागरूकता की लहर धीरे-धीरे गांव -गांव , शहर -शहर बढ़ रही है, जिससे महिला वर्ग जागरूक होकर अपने नेतृत्व करने की क्षमता का विकास कर रही है। हर महिला को इसका लाभ मिले। यही हम सब की आशा और कामना है।

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