वर्मीकंपोस्ट: ग्रामीण काश्तकारों के लिए एक समृद्धि का स्रोत

 

हमारा भारत पशु प्रधान देश है। हमारे ग्रामीण भागों में कई दुधारू पशु पाए जाते हैं। इनमें प्राप्त मल अपशिष्ट व्यर्थ में फेंक दिया जाता है क्योंकि आजकल हमारे पास कृषि के लिए यूरिया का डीपीएस व रासायनिक पदार्थ उपज को बढ़ाने हेतु डाले जाते हैं जिससे इंसानों में लिवर, फेफड़ों व किडनी की बीमारियां बनती है। इसके बचाव के लिए ग्रामीण काश्तकारों को केंचुए से बनी वमीऺ कंपोस्ट खाद का प्रयोग करना चाहिए। यह पूरी तरह उर्वरक क्षमता से भरपूर है। पोषण पदार्थ से भरपूर एक उत्तम जैव उर्वरक है। यह केंचुआ आदि कीड़ों के द्वारा वनस्पतियों एवं भोजन के कचरे आदि को विघटित करके बनाई जाती है। वर्मी कंपोस्ट में बदबू नहीं होती और इससे मक्खी मच्छर भी नहीं बढ़ते हैं। 


इस बदलते पर्यावरण में कीटनाशकों के रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से हमारी धरती का उपजाऊपन लगातार नष्ट होता जा रहा है जिससे कुछ समय ये बाद जमीन बंजर हो रही है। उसकी इसकी क्षमता बढ़ाने हेतु राजस्थान समग्र कल्याण संस्थान द्वारा हर गांव में काश्तकारों के लिए यह वर्मी कंपोस्ट खाद्य निर्माण कार्यक्रम कराए गए हैं। इसमें यह बताया गया है। किस तरह हमें इसका निर्माण कर सकते हैं। इसे बनाने के लिए लाल केंचुआ अच्छे माने जाते हैं। अफ्रीकी केंचुआ लाल केंचुए को अपेक्षा में आकर में बड़ा एवं गहरे रंग का होता है। इन कैचुओं को आपस में मिलाकर वर्मी कंपोस्ट का उत्पादन किया जाता है। इसे बनाने के लिए गोबर, किचन वेस्ट, और पेड़ के सूखे पत्ते चाहिए। सबसे पहले एक गड्ढा करें और उसमें इन तीनों चीजों को डाल दें। इसके बाद गड्ढे को अच्छे से मिट्टी से ठक दे और पानी का छिड़काव कर दे।कम से कम 1 से 2 हफ्ते बाद गङ्गे को खोलकर देखना पर यह खाद हमें तैयार मिलती है।


इसके लगातार प्रयोग से भूमि की उवऺरता शक्ति बढ़ती है। उत्पादन में स्थिरता को समाप्त कर पुनः उत्पादन बढ़ाता है। उत्पाद की गुणवत्ता में सुधार लाता है। भूमि कटाव को कम करता है तथा भूमिगत जलस्तर में बढ़ोतरी करता है। केंचुए किसान के मित्र कहे जाते हैं क्योंकि वह खेतों को मिट्टी की सुरंगे बनाकर पोली कर देते हैं तथा नीचे की मिट्टी को ऊपर पलट देते हैं। जिस भूमि अधिक उपजाऊ बनती है। केंचुओं के लिए उच्च जल धारण क्षमता और कार्बनिक पदार्थ वाली सिटी मिट्टी आदऺश आवास प्रदान करती है, जिसमें कार्बनिक पदार्थ की मात्रा और जल धारण की क्षमता कम होती है और यह जल्दी सूख भी जाती है। वह सुविधाजनक तापमान तक जल्दी पहुंच जाती है।


राजस्थान समग्र कल्याण संस्थान के प्रतिनिधियों ने बताया कि अपशिष्ट कार्बनिक पदार्थ को मिलाकर केंचुए से प्राप्त विस्ठा को वर्मी कंपोस्ट कहते हैं। वर्मी कंपोस्ट एक प्राकृतिक जैविक उत्पाद है। इसका मृदा में कृषि उत्पादन में किसी प्रकार का अवशेष नहीं रहता है। यह एक जटिल जैविक उर्वरक है एवं अन्य कंपोस्ट खाद की अपेक्षा अधिक उपयुक्त एवं पोषक तत्वों से भरपूर होता है। केंचुए की विस्ठा में नाइट्रोजन,सल्फर,पोटाश के अलावा अन्य सूक्ष्म पोषक तत्व पाए जाते हैं जो पौधों की वृद्धि करने में सहायक है। वर्मी कंपोस्ट से उत्पादन सेहत के लिए काफी फायदेमंद होता है। व उत्पाद का बाजार में अधिक मूल्य भी मिलता है। यह उत्पादन की भंडारण क्षमता को बढ़ाता है। यह मृदा में लवणता की कमी को भी कम करता है। 


संस्थान द्वारा किया जा रहा है यह कार्य हमारे काश्तकार भाइयों के लिए बेहद फायदेमंद साबित हो रहा है। इसके लिए हम सब संस्था का तहे दिल से धन्यवाद करते हैं।

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