परिवर्तन के धागे: सिलाई के माध्यम से सशक्तिकरण




मेरा नाम सुनीता कंवर है। मैं एक विधवा महिला हूं। मेरे छः बच्चे हैं जो अभी बहुत ही छोटे हैं। पति का एक एक्सीडेंट में स्वर्गवास हो गया है। घर में एक बुढ़ी सास है अब मुझे मेरा वह मेरे बच्चों का पालन पोषण करना बहुत ही कठिन हो गया है। मेरे पास अन्य कोई साधन भी नहीं जिसके उपयोग से मैं अपने परिवार का निवऺहन कर सकूं। इस बात की जानकारी मैंने गांव की एक महिला की मदद से राजस्थान समग्र कल्याण संस्थान संस्था तक पहुचाई | जिससे मुझे कुछ मदद मिल सके।


फिर राजस्थान समग्र कल्याण संस्थान संस्था द्वारा संस्था प्रतिनिधियों ने मेरा सर्वे किया है जिसमें मुझे आजीविका के साधन अपनाने हेतु सुझाव दिया। मैंने उन्हें बताया मुझे कुछ सिलाई आती है फिर उनके द्वारा मुझे एक सिलाई प्रशिक्षण में मेरा नाम जुड़वां दिया गया। मैंने 90 दिन की कठिन परिश्रम से इस प्रशिक्षण में और अच्छा सिलाई कार्य सीखा। फिर इसके पश्चात संस्था द्वारा मुझे एक सिलाई मशीन का वितरण किया गया जिससे मैं स्वयं का कार्य प्रारंभ कर अपने बच्चों व अपने परिवार का भरण पोषण कर सकूं।


सिलाई मशीन मिलने के पश्चात मैंने समीप के पुष्कर गांव में अंग्रेजों के वस्त्र सिलना, वह घरेलू वस्त्र सिलाई जैसे ओढ़नी कुर्ता, पजामा, ब्लाउज, घाघरा, पेटीकोट,राजपूती परिधान, शर्ट बनाने का कार्य प्रारंभ किया। शुरुआत में मुझे कुछ कठिनाइयाँ हुईफिर इसके बाद मेरा यह कार्य सफलतापूर्वक चलने लगा, जिससे मुझे अच्छी प्राप्त आय होने लगी मैं अब स्वयं का वह अपने परिवार का भरण पोषण अच्छे से करने के लिए सक्षम हूं। वह गांव की अन्य महिलाओं को भी इस कार्य की प्रेरणा देकर उन्हें भी इस कार्य से जोड़ रही हूं और लाभान्वित करने का प्रयास कर रही हूं।


सच कहूं तो मैं हर तरफ से निराश हो गई थी। परंतु राजस्थान समग्र कल्याण संस्थान संस्था द्वारा मुझमें पुनः एक नई चेतना के साथ मेरे जीवन में नई ऊर्जा का संचारमिला जिसके फल स्वरुप में अपने संघर्षमय जीवन से इस सम्मानजनक स्थिति में पहुंच कर अपने परिवार का लालन-पालन कर रही हूं। यह सब कुछ राजस्थान समग्र कल्याण संस्थान संस्था के अथक प्रयासों की वजह से ही संभव हो पाया है। इस कार्य के लिए जीवन भर मैं संस्था के इस परोपकारी कार्य का धन्यवाद करती रहूंगी और भगवान से प्रार्थना करती हूं कि समाज की और गरीब ,विधवा,बेसहारा महिलाओं को संस्था ऐसे ही कार्य करती रहे वे उन्हें लाभान्वित करती रहे।

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