समावेशी विकास: दिव्यांगों को सशक्त बनाने के लिए प्रतिबद्धता
इसके लिए राजस्थान समग्र कल्याण की टीम प्रत्येक गांव के दिव्यांग व उनके परिवार को ऐसे स्थान पर एकत्रित किया जाता है जहां पर उनको उठने बैठने की सुविधा मिल सके फिर उनके साथ पूरे दिन वहाँ कार्यक्रम किए जाते हैं व उनका मनोरंजन पूर्ण तरीके से सिखाया फिर समझाया जाता है। उनके साथ चचा, प्रश्नोत्तरी, चित्रकला, नृत्य, मनोरंजक गतिविधियां की जाती है और उत्साह वर्धन में उनकी अभिरूचिया जानी जाती है। उनके द्वारा तरह-तरह की अभिव्यक्तियों के लिए उनको प्रेरित किया जाता है कि वो अपने जीवन के लिए आगे का मार्ग प्रशस्त करें। उत्साहवर्धक इस कार्य से उनके आंतरिक विचार देखने को मिलते हैं। इस कार्यक्रम के द्वारा उनके मनोबल का विकास होता है वह सशक्तिकरण भी होता है।
विकलांगता शब्द किसी भी प्रकार की शारीरिक या मानसिक दुर्बलता, भागीदारी प्रतिबंध और गतिविधि सीमाओं के लिए व्यापक शब्द है। आज भी समाज में दिव्यांग को एक सामाजिक कंलक के रूप में देखा जाता है जिसे बहुत हद तक सुधारने की आवश्यकता है। इसलिए भी यह दिन दिव्यांगों के लिए मायने रखता है। यह दिन विकलांगता और विकलांग लोगों के साथ समाज में सामाहिती की जाती है और उनके अधिकारों और सब समथऺन में बढ़ती चर्चा को प्रोत्साहित करने का एक मौका है। इसके कारण इस समाज का समर्पण बढ़ाना मिलता है ताकि विकलांग लोग समाज के साथ बराबरी और समानता महसूस कर सके।
इस दिवस का बहुत महत्व है क्योंकि यह एक मंच प्रदान करता है जिसके माध्यम से विकलांगता को समझाया जा सकता है।और उसके साथ समाज में सौहार्द और समर्थन को बढ़ाया जा सकता है। इस दिन के माध्यम से समाज को यह याद दिलाया जाता है कि हर व्यक्ति का अधिकार है। एक समर्थ और समाज को शामिल होने का और विकलांग लोगों को उनकी आवश्यकताओं के आधार पर समाज में समर्थ बनाए रखने का समर्थन करता है। इस कार्यक्रम के माध्यम से जागरूकता फैलती है। इन लोगों का समर्थन बढ़ता है और अधिकारों की सुरक्षा होती है समर्थ समाज की दिशा में प्रेरणा देता है। शिक्षा के पूर्ण महत्व को समझता है और समाज में संबंध में बनाने का कार्य करता है।
राजस्थान समग्र कल्याण संस्थान द्वारा कराया गया यह सामाजिक कार्य बेहद सराहनीय है इसके लिए हम सभी उनका धन्यवाद और आभार प्रकट करते हैं।
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