सिंधु ताई सपकाल: एक माँ का प्यार सभी बाधाओं के बावजूद मातृत्व को अपनाना



 सिंधुताई का 10 वर्ष की आयु में 30 वर्ष श्री हरि सपकाल से विवाह कर दिया गया। 20 वर्ष की आयु तक उनकी तीन संताने हो चुकी थी। सिंधुताई ने जिला अधिकारी से गांव वालों को उनकी मजदूरी के पैसे ना देने वाले गांव के मुखिया की शिकायत की। अपने इस अपमान का बदला लेने के लिए मुखिया ने उनके पति को घर से बाहर निकालने का प्रवृत्त किया। उनके पति ने उन पर अवैध संबंधों का आरोप लगाकर उन्हें पीटकर के घर से बाहर निकाल दिया। इस समय वह 9 माह की गर्भवती थी। उसी रात उन्होंने तबेले में अघऺचेतन एक बेटी को जन्म दिया। जब वह अपनी मां के घर आई तो उनकी मां ने भी उन्हें घर में रखने से इनकार कर दिया। फिर वह अपनी बेटी के साथ रेलवे स्टेशन पर रहने लगी। पेट भरने के लिए भीख मांगती और रात में खुद को वह अपनी बेटी को सुरक्षित रखने हेतु श्मशान में रहती। उनके इस संघर्षमय काल में यह अनुभव किया कि देश में न जाने कितने सारे अनाथ बच्चे हैं जिनको एक मां की जरूरत है तब उन्होंने निर्णय लिया। जो भी अनाथ बच्चा उनके पास आएगा। वे उनकी मां बनेगी। उन्होंने अपनी खुद की बेटी को  दगडुसेठ हलवाई पुणे महाराष्ट्र को ट्रस्ट में दे दिया ताकि वह सारे बच्चों की माँ बन सके |


सिंधुताई ने अपना पूरा जीवन अनाथ बच्चों के लिए समर्पित किया | इसलिए उन्हें ताई यानी माँ कहा जाता है। उन्होंने 1080 अनाथ बच्चों को गोद लिया। उनके परिवार में 208 दामाद 39 बहुऐं है। 1000 से ज्यादा पोते पोती है। उनकी अपनी बेटी वकील है और उन्होंने गोद लिए बहुत सारे बच्चे आज डॉक्टर,अभियंता,वह वकील बने हैं। उनमें से बहुत सारे खुद का अनाथ आश्रम भी चलाते हैं।


सिंधुताई को 247 राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त है जिनमें अहिल्याबाई होॢकर का पुरस्कार है जो स्त्री और बच्चों के लिए काम करने वाले समाजसेवीयों को महाराष्ट्र सरकार द्वारा दिया जाता है। इस धन को वह अनाथ आश्रम के लिए इस्तेमाल करती है। उनके अनाथ आश्रम पुणे,वर्धा,सासवड़ में स्थित है। 2010 में सिंधुताई के जीवन पर आधारित " मी सिंधुताई सपकाल " मराठी चित्रपट बनाया गया।


सिंधुताई के पति जब 80 साल के हो गए तब वे उनके साथ रहने के लिए आए | सिंधुताई ने अपने पति को एक बेटे के रूप में स्वीकार किया। वह कहती है कि वह सिर्फ माँ है। आज वह बड़े गवऺ के साथ बताती है कि वह उनके सबसे बड़े बेटे हैं। सिंधुताई कविता भी लिखती है और उनकी कविताओं में जीवन का पूरा  होता है। वह अपनी मां के प्रति आभार प्रकट करती हुई कहती है कि अगर उसकी मां ने उनका पति के घर से निकलने के बाद सहारा दिया होता तो वह आज इतने सारे बच्चों की माँ नहीं बन पाती।


अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सिंधुताई ने अपनी संस्था के प्रचार के लिए और कार्य करने के लिए निधि संकलन हेतु प्रदेश दौरे किए। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उन्होंने अपनी वाणी और काव्य से समाज को प्रभावित किया। विदेशी अनुदान आसानी पूर्वक मिले। इस उद्देश्य से उन्होंने "मदर ग्लोबल संस्था"  की स्थापना की।

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