महाराष्ट्र की धरोहर: डॉ. रानी बंग और कम्युनिटी हेल्थ का क्रांतिकारी कार्य



जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी से, पब्लिक हेल्थ में मास्टर्स की डिग्री प्राप्त करने के बाद, डॉ रानी बंग के लिए पूरी दुनिया के दरवाज़े खुले थे, पर उन्होंने इंडिया के सबसे पिछड़े हुए क्षेत्रों में से एक को चुना। हाथ में स्टेथोस्कोप लिए, बेहतर हेल्थ के लिए काम करने वाले एक दूत की तरह बंग ने गढ़चिरौली, महाराष्ट्र में कदम रखा।


उस समय, इस क्षेत्र में वह इकलौती गायनोकोलॉजिस्ट थी, जिन्होंने औरतों से बातचीत की और उनके अनुभव एवं समस्याओं को समझा – यह बातचीत एक रिसर्च में बदल गई, जिसे उन्होंने यूनाइटेड नेशन्स सहित कई ग्लोबल प्लेटफॉर्म्स तक पहुंचाया। पहली बार, किसी कम्युनिटी पर आधारित ऐसी स्टडी, जो वहां पर फैली गायनोकोलॉजिकल समस्याओं को दर्शाती थी, 92 प्रतिशत औरतों को गायनोकोलॉजिकल समस्याएं थी पर उनमें से सिर्फ 8 प्रतिशत ने प्रोफेशनल मदद लेना ज़रूरी समझा।


बंग की इस कोशिश ने औरतों की सेहत से जुड़े नज़रिए को ही बदल डाला, जो कि सिर्फ प्रेगनेंसी और बच्चे को जन्म देने तक ही सीमित नहीं है। आईडीआर को दिए अपने एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा, “औरतों को पहले मेंस्ट्रुएशन की उम्र से लेकर मरने तक, इतनी समस्याएं होती हैं जिन पर ध्यान देना बहुत ज़रूरी है।”


बंग और उनके पति, डॉ अभय बंग के लिए, हेल्थकेयर सिर्फ इलाज उपलब्ध कराना नहीं था। वह लोकल लोगों से बात करके, उनके रहनसहन और ज़रूरत-अनुसार सुविधाएं तैयार कर, उन्हें एक अलग अनुभव देना चाहते थे।


आमतौर पर हॉस्पिटल के स्टरलाइज़ कॉरिडोर और टिमटिमाती सफ़ेद लाइट्स वाले नाजुक माहौल को देख कर तो एक शहरी आदमी भी घबरा जाए, इसलिए बंग फैमिली ने झोपड़ियों के एक समूह के रूप में अपने हॉस्पिटल को डिज़ाइन किया, जो दिखने में एक छोटे गाँव जैसा ही था। यहां हेल्थकेयर सिर्फ एक ठंडा उदासीन क्लीनिकल अनुभव नहीं था, बल्कि एक बहुत ही सुखद अनुभव था।


1985 में, रानी और उनके पति ने सर्च (सोसायटी फॉर एज्युकेशन, एक्शन एंड रिसर्च इन कम्युनिटी हेल्थ) नामक एक संस्था शुरू की, जिसके द्वारा की गई बहुत सी मार्गदर्शक स्टडीज़ को पॉलिसीज़ में बदला गया, और जो कम्युनिटी के सहयोग से कई एजुकेशनल हेल्थ प्रोग्राम भी चलाती है। डब्ल्यूएचओ, यूएन, यूनिसेफ जैसी संस्थाओं से वाहवाही, अवार्ड्स और भारत सरकार द्वारा पद्मश्री प्राप्त करने एवं पूरी दुनिया में अपनी पहचान बनाने के बावजूद भी, इस बंग दंपति ने पिछड़ी हुई कम्युनिटीज़ के लिए अपना काम जारी रखा है।


लोकल स्तर पर काम कर रहे यह बंग दंपति, अपनी सर्विस, एजुकेशन, खुद की रिसर्च और नई पॉलिसियों के माध्यम से, पूरे विश्व को प्रभावित कर रहे हैं।

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